सामाजिक

आत्मग्लानि

अरे! तुम लोगों की हिम्मत कैसे हुई घर के अंदर आने की ? पता नहीं कहाँ–कहाँ से लोग आ जाते हैं। कपड़ा देखो कितना गंदा है;बदबू भी आ रही है।विभा घर के सामने खड़े हुए भिखारी पर भड़क उठी।इतना क्रोध देख ऐसा लग रहा था मानो ज्वालामुखी इनके ही अंदर से निकलती हो। साफ–सफाई की एकदम पक्की, किसी भी सामान को छूने से पहले और छूने के बाद हाथ को अच्छी तरह से रगड़ –रगड़ कर धोना आदत सी हो गई थी।विभा को देख घर में रखे वाशिंग पाउडर भी सर झुका लेते थे। किसी भिखारी और कबाड़ी वाले का विभा के साथ छत्तीस का आंकड़ा था। उनके घर के सामने से चले जाते तो सड़क में पाइप से पानी डाल देती थी। थोड़ी देर बाद फिर एक छोटी बच्ची सुषमा हाथ में कटोरा लिए बोली माई….वो माई… एक –दो रोटी दे देना, मैं और भाई दोनों भूखे हैं कल रात से कुछ नहीं मिला। विभा रोटी फेंक कर देती है, जैसे किसी जानवर को रोटी खिला रही हो। सुषमा और उसका भाई चिंटू को बहुत बुरा लगा उनके साथ तो जानवरों से भी ज्यादा दुर्व्यवहार किया जा रहा है। सुषमा से रहा नहीं गया वो बोल पड़ी। रहने दो माई; हमको नहीं चाहिए आपकी ये फेंकी हुई रोटी।हम कोई सड़क के घूमते हुए कुत्ते थोड़ी ना हैं जो फेंक कर दे रही हो। हम भी तो इंसान हैं….।चल भाई हम कहीं दूसरी जगह से मांग कर खा लेंगे। विभा बोली हांँ….हाँ‌ जाओ…जाओ।आजकल भिखारी  के भाव कितने बढ़े हुए हैं;मुंँह टेढ़ा कर जोर से दरवाजा बन्द कर दी।

अगले ही दिन विभा ऑफिस जा रही थी। अचानक विभा की गाड़ी दूसरी गाड़ी के साथ टक्कर हो गई और वह नाली में गिर गई। विभा के पैर कीचड़ में फँस गए। वह निकाल नहीं पा रही थी। सुषमा और उसका भाई चिंटू जाते हुए विभा के पास मदद के लिए  दौड़ पड़े वे दोनों नहीं जानते थे की विभा हैं। दोनों हाथ बढ़ाने ही वाले थे अचानक विभा का चेहरा सामने आ गया। दोनों रुक गए। विभा रूवासे स्वर में कहा, रुक क्यों गए मेरी मदद करो। नहीं…. नहीं….माई हम आपको छू देंगे तो आप अशुद्ध हो जायेंगे , जब हम घर के बाहर खड़े हुए थे तब आप पूरे चौराहे को शैम्पू से धो दिए अब आपको हाथ लगायेंगे तो आप पता नहीं कितनी बार गंगाजल से स्नान करेंगे। विभा को आत्मग्लानि होने लगी।

— प्रिया देवांगन “प्रियू”

प्रिया देवांगन "प्रियू"

पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़ Priyadewangan1997@gmail.com