सामाजिक

बालिकाएं गढ़ रही हैं सफलता के नवल आयाम

परिवार एवं समाज के विकास के लिए यह अत्यावश्यक है कि स्त्री और पुरुष दोनों के लिए समान रूप से शिक्षा और विकास के अवसर उपलब्ध हों। स्वास्थ्य एवं पोषण के मामले में कोई भेदभावपूर्ण व्यवहार न किया जा रहा हो। हालांकि देश के पिछले कुछ दशक समाज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में असमानता एवं गैरबराबरी के दौर से गुजरे हैं, लेकिन अब स्थिति बेहतर हो रही है जो अच्छा संकेत है। परिवार के विकास रथ का एक सबल पहिया होने के बावजूद स्त्री या बालिकाओं के प्रति समाज का नजरिया संकुचित एवं दोषपूर्ण था, जिसे भारत के लिंगानुपात से भलीभांति समझा जा सकता है। 2011 की जनगणना में पुरुष महिला लिगांनुपात 943 था। और पीछे की ओर चलें तो 933 (2001), 927 (1991), 934 (1981) रहा है, जिसका एक बड़ा कारण बालिका भ्रूण हत्या या नवजात कन्या हत्या, अशिक्षा, दहेज और पुरुष सत्तात्मक सोच थी। यदि बाल लिंगानुपात देखें  तो 927 (2001) की अपेक्षा 919 (2011) घटा है। स्पष्ट है कि समाज में व्याप्त पुरुषवादी मानसिकता के कारण वंशबेल की वृद्धि हेतु पुत्र की कामना की जाती रही है और बेटी को पराया धन समझा जाता रहा है। स्त्री सशक्तिकरण की बातें तब तक बेमानी हो जाती है जब तक बालिकाओं के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण और रोजगार के समान अवसर उपलब्ध नहीं हो जाते। इसके लिए जरूरी है कि बालिकाओं के प्रति व्याप्त असमानता एवं भेदभाव पूर्ण पारिवारिक एवं सामाजिक व्यवहार से सकल समाज मुक्त हो और बालक-बालिका के प्रति खान-पान एवं शिक्षा-दीक्षा के लिए समदृष्टि से एकसमान व्यवहार करे। लड़कियों द्वारा सामना की जा रही सभी प्रकार की असमानताओं और सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध जन-जागरूकता लाते हुए बालिका अधिकारों के प्रति समाज में चतुर्दिक चेतना का संचार एवं प्रचार-प्रसार करना ही एकमात्र विकल्प है। राष्ट्रीय बालिका दिवस का आयोजन इसी दिशा में उठाया गया एक सशक्त, सम्यक एवं सार्थक कदम है जिसके द्वारा समाज में जागरूकता बढ़ी है।

               24 जनवरी को प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है क्योंकि देश में पहली बार एक स्त्री ने सरकार के नेतृत्व की कमान संभाली थी। इंदिरा गांधी पहली बार प्रधानमंत्री के रूप में 24 जनवरी, 1966 को पदारूढ़ हुई थीं। इंदिरा गांधी का नेतृत्व समाज और देश को दिशा देने वाला था और उनको एक शक्ति के रूप में याद किया जाता है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 2008 में 24 जनवरी को इंदिरा गांधी को शक्ति के रूप में याद करने एवं बालिका शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण के महत्व पर बल देने हेतु राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत की थी। इस अवसर पर संपूर्ण देश में सरकारों द्वारा विभिन्न प्रकार के जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। बालिका शिशु बचाने एवं बालिका लिंगानुपात बेहतर करते हुए बालिकाओं के आगे बढ़ाने के रास्ते पर आ रही चुनौतियां एवं बाधाओं को दूर करने का प्रयास किया जाता है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान इसी दिशा में एक सशक्त प्रयास है जिसके द्वारा स्कूल जाने वाली बालिकाओं की संख्या में खासी वृद्धि हुई है और माता-पिता अभिभावक बालिका शिक्षा के महत्व से परिचित हुए हैं। बालिकाओं की शिक्षा की निरंतरता के लिए आरंभ की गई सुकन्या समृद्धि योजना से बालिकाओं की शिक्षा में आ रही रूकावटों को दूर किया गया है। इसके साथ ही विभिन्न संस्थाओं द्वारा बालिकाओं को आगे बढ़ाने के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाएं जाते हैं जिनसे प्रशिक्षित होकर बालिकाएं स्वरोजगार करते हुए समाज में स्त्री सशक्तिकरण के उदाहरण के रूप में देखी जा रही हैं। आज समाज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में बालिकाओं ने न केवल पदार्पण किया है बल्कि उपलब्धियां और सफलताओं के नवल आयाम भी गढ़े हैं। अभी चंद्रयान 3 के सफल अभियान में वैज्ञानिकों की टीम में एक बड़ी संख्या महिलाओं की थी, जिससे देश का गौरव बढ़ा है। आज साहित्य, समाज सेवा, कला एवं संस्कृति, फिल्म, रंगमंच, विज्ञान, साहसिक खेल, पर्यटन, लोक साहित्य, विविध खेल, संगीत, शास्त्रीय नृत्य एवं सशस्त्र सेना आदि क्षेत्र में बालिकाएं अपनी प्रमुख भूमिका निर्वहन कर रही हैं। आज तमाम भारतीय महिलाएं बहुराष्ट्रीय कंपनियों की शीर्ष अधिकारी हैं। यह दर्शाता है कि समाज में बालक-बालिका के बीच असमान व्यवहार समाप्ति की ओर है, किंतु लक्ष्य अभी बहुत दूर है, अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। जब तक बालिकाओं के साथ छेड़खानी, बलात्कार और हिंसक अपराध समाप्त नहीं हो जाते, जब तक बालिकाओं को उनके हक नहीं मिल जाते तब तक हम चुप नहीं बैठ सकते।

           स्मरण रहे, बालिकाएं समाज जीवन का निर्मल निर्झर प्रवाह हैं। बालिकाएं ऊर्जा हैं, सम्बल हैं, चेतना हैं। बालिकाएं ही राष्ट्र की प्राणधारा की संवाहिकाएं हैं। बालिकाएं युग के पृष्ठ पर शक्ति का अमिट हस्ताक्षर हैं। बालिकाएं जीवन का राग है, उत्सव हैं, फाग हैं, रचनात्मकता की आग हैं। बालिकाएं हैं तो समाज सुंदर है, सुवासित है, प्राणवान है। बालिकाएं हैं तो जीवन का अर्थ है अन्यथा सब व्यर्थ है। बालिकाएं हैं तो शांति है, समृद्धि है, संतुष्टि है। बालिका दिवस के अवसर पर हम देश की हर बालिका के विकास पथ पर ज्ञान का आलोक बिखेर सकें, नेह का सम्बल दे सकें, यही कामना करता हूं।

— प्रमोद दीक्षित मलय

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - pramodmalay123@gmail.com