Author: *प्रियंका सौरभ

शिक्षा एवं व्यवसाय

प्रेस स्वतंत्रता दिवस: “जब पत्रकारिता ज़िंदा थी…”

\प्रेस स्वतंत्रता दिवस अब औपचारिकता बनकर रह गया है। पत्रकारिता की जगह अब सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स ने ले ली है,

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राजनीति

अंततः देश में जाति जनगणना: प्रतिनिधित्व या पुनरुत्थान?

भारत में दशकों से केवल अनुसूचित जातियों और जनजातियों की गिनती होती रही है, जबकि अन्य जातियाँ नीति निर्माण में

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राजनीति

देश चुप है, पत्नी नहीं: एक सिपाही की वापसी की जंग”

बीएसएफ़ के जवान पूर्णम साहू पिछले एक सप्ताह से पाकिस्तान के कब्ज़े में हैं। वह ड्यूटी के दौरान सीमा पार

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सामाजिक

हिंदी साहित्य की आँख में किरकिरी: स्वतंत्र स्त्रियाँ

हिंदी साहित्य जगत को असल स्वतंत्र चेता प्रबुद्ध स्त्रियां अभी भी हजम नहीं होती। उन्हें वैसी ही स्त्री लेखिका चाहिए

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