Author: राजेन्द्र लाहिरी

कविता

निभाये हैं रस्म मैंने

घर में,गांव में,समाज में,विद्यालय में,औषधालय में,और न जाने कहां कहां,निभाये हैं रस्म मैंने,जलील होने का,खान पान पश्चातअपना ही जूठा धोने

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