Author: राजेन्द्र लाहिरी

कविता

व्यंग्य कविता – आ जाओ बंटाधार करो

इंसां मरता है मर जाए,बीमारी से ही गुजर जाए,पर जानवरों का सही इलाज करो,इंसानियत छोड़ो साथीपशुवत अंदाज धरो,राजनीतिक माताओं का

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कविता

निभाये हैं रस्म मैंने

घर में,गांव में,समाज में,विद्यालय में,औषधालय में,और न जाने कहां कहां,निभाये हैं रस्म मैंने,जलील होने का,खान पान पश्चातअपना ही जूठा धोने

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