गरीबी की मार
टूटी हुई छोपड़ियों से निकल कर, गन्दीली बस्तियों के रास्ते से, गुजरती हुई जाती है, हर रोज वह अबला। चमचमाती
Read Moreटूटी हुई छोपड़ियों से निकल कर, गन्दीली बस्तियों के रास्ते से, गुजरती हुई जाती है, हर रोज वह अबला। चमचमाती
Read Moreकलम का मुह खुलते ही, स्वर्णाच्छर पन्नों पर उग जाते हैं। उन्हीं अक्षरों के निकलते ही, शब्दों के नव अंकुर
Read Moreनहीं जानता था कि यहाँ पर इतना सब कुछ होगा। फर्ज को एहसान बताकर ऐसा हृदय विदारक होगा। मेरे मन
Read Moreसुबह की ठन्डी हवा मेरे तन में लगी । आलस्य हटाती, मेरा मन हर्षित हुआ । कनकनी मोती की तरह
Read Moreजब पारंगामिता , परम्परागत होती है। तब परिहारिक, अपने कला की, परिमिता को पार कर जाता है। पार्थिव का आकलन
Read Moreकौवा कांव-कावं करता हुआ, घर के मुन्डेर पर देता दस्तक। अपनी आवाज़ में भूख को इंगित, करता हुआ। नर से
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