“गोबर लिपे हुए घर-आँगन नहीं रहे”
महक लुटाते कानन पावन नहीं रहे गोबर लिपे हुए घर-आँगन नहीं रहे — आज आदमी में मानवता सुप्त हुई गौशालाएँ
Read Moreमहक लुटाते कानन पावन नहीं रहे गोबर लिपे हुए घर-आँगन नहीं रहे — आज आदमी में मानवता सुप्त हुई गौशालाएँ
Read Moreमौसम कितना हुआ सुहाना। रंग-बिरंगे सुमन सुहाते। सरसों ने पहना पीताम्बर, गेहूँ के बिरुए लहराते।। — दिवस बढ़े हैं शीत
Read Moreकितने हसीन फूल, खिले हैं पलाश में फिर भी भटक रहे हैं, चमन की तलाश में — पश्चिम की गर्म
Read Moreजीवन में अँधियारा, लेकिन सपनों में उजियाला है। आभासी दुनिया में होता, मन कितना मतवाला है।। — चहक-महक होती बसन्त
Read Moreफागुन में कुहरा छाया है। सूरज कितना घबराया है।। — अलसाये पक्षी लगते हैं। राह उजाले की तकते हैं।। —
Read Moreहो रहा विहान है, रश्मियाँ जवान हैं, पर्वतों की राह में, चढ़ाई है ढलान है।। — मतकरो कुतर्क कुछ, सत्य
Read Moreकुहरे और सूरज दोनों में,जमकर हुई लड़ाई। जीत गया कुहरा, सूरज ने मुँहकी खाई।। — ज्यों ही सूरज अपनी कुछ
Read Moreरहती है आकांक्षा, जब तक घट में प्राण। जिजीविषा के मर्म को, कहते वेद-पुराण।। — जीने की इच्छा सदा, रखता
Read Moreहो रहा विहान है, रश्मियाँ जवान हैं, पर्वतों की राह में, चढ़ाई है ढलान है।। — मतकरो कुतर्क कुछ, सत्य
Read Moreसन्नाटा पसरा है अब तो, गौरय्या के गाँव में। दम घुटता है आज चमन की, ठण्डी-ठण्डी छाँव में।। — नहीं
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