मुक्तक/दोहा

दोहे “कोरोना वायरस”

देख वायरस को मची, जग में हाहाकार।
कोरोना से डर रहा, सारा ही संसार।।

जगह-जगह पर हो रही, कोरोना की जाँच।
विज्ञानी इस रोग की, रहे पोथियाँ बाँच।।

कोरोना की उड़ रहीं, जगह-जगह अफवाह।
अपने-अपने ढंग से, देते लोग सलाह।।

चेहरा ढककर मास्क से, घर से निकलो आप।
भीड़-भाड़ में मत करो, लग कर गले मिलाप।।

साफ-सफाई का रखो, मन्त्र हमेशा याद।
करो तीन फिट दूर से, लोगों से संवाद।।

तुलसी और गिलोय का, सेवन करना क्वाथ।
साबुन से धोना सभी, बार-बार निज हाथ।।

लड़ना है डरना नहीं, कोरोना से आज।
सरदी और जुकाम का, करना जाँच-इलाज।।

हवन करो लोबान से, जला धूप-नैवेद्य।
कभी किसी के द्वार पर, नहीं आयेंगे वैद्य।।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है