“ककड़ी बिकतीं फड़-ठेलों पर”
लम्बी-लम्बी हरी मुलायम। ककड़ी मोह रही सबका मन।। कुछ होती हल्के रंगों की, कुछ होती हैं बहुरंगी सी, कुछ होती
Read Moreलम्बी-लम्बी हरी मुलायम। ककड़ी मोह रही सबका मन।। कुछ होती हल्के रंगों की, कुछ होती हैं बहुरंगी सी, कुछ होती
Read Moreसड़क किनारे जो भी पाया, पेट उसी से यह भरती है। मोहनभोग समझकर, भूखी गइया कचरा चरती है।। कैसे खाऊँ
Read Moreरहता वन में और हमारे, संग-साथ भी रहता है। यह गजराज तस्करों के, जालिम-जुल्मों को सहता है।। समझदार है, सीधा
Read Moreगदराई पेड़ों की डाली हमें सुहाती हैं कानन में।। हम पंछी हैं रंग-बिरंगे, चहक रहे हैं वन-उपवन में।। पवन बसन्ती
Read Moreफागुन की फागुनिया लेकर, आया मधुमास! पेड़ों पर कोपलियाँ लेकर, आया मधुमास!! धूल उड़ाती पछुआ चलती, जिउरा लेत हिलोर, देख
Read Moreमन में आशायें लेकर के, आया हैं मधुमास, चलो होली खेलेंगे। मूक-इशारों को लेकर के, आया है विश्वास, चलो होली
Read Moreतीखी-तीखी और चर्परी। हरी मिर्च थाली में पसरी।। तोते इसे प्यार से खाते। मिर्च देखकर खुश हो जाते।। सब्ज़ी का
Read Moreमौसम कितना हुआ सुहाना। रंग-बिरंगे सुमन सुहाते। सरसों ने पहना पीताम्बर, गेहूँ के बिरुए लहराते।। दिवस बढ़े हैं शीत घटा
Read More