Author: *डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

गीतिका/ग़ज़लबाल साहित्य

“बैठकर के धूप में सुस्ताइए”

आ गई हैं सर्दियाँ मस्ताइए। बैठकर के धूप में सुस्ताइए।। पर्वतों पर नगमगी चादर बिछी. बर्फबारी देखने को जाइए। बैठकर

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