बालकविता “गिलहरी”
बैठ मजे से मेरी छत पर, दाना-दुनका खाती हो! उछल-कूद करती रहती हो, सबके मन को भाती हो!! तुमको पास
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Read Moreदुनियाभर में बहुत हैं, ऐसे जहाँपनाह। उल्लू की होती जिन्हें, कदम-कदम पर चाह।। — उल्लू का होता जहाँ, शासन पर
Read Moreनशा है चढ़ा हुआ, खुमार ही खुमार है। तन-बदन में आज तो, बुखार ही बुखार है।। मुश्किलों में हैं सभी,
Read Moreकह देती हैं सहज ही, सुख-दुख-करुणा-प्यार। कुदरत ने हमको दिया, आँखों का उपहार।। — आँखें नश्वर देह का, बेशकीमती अंग।
Read Moreये गुरूनानक का दरबार। दर्शन कर लो बारम्बार।। लगा हुआ नानकमत्ता में, दीवाली का मेला, कृपाणों की दूकानें और फूलों
Read Moreभइया की लम्बी आयु का, माँग रहीं है यम से वर। मंगलतिलक लगाती बहना, भाईदूज के अवसर पर।। चन्द्रकला की
Read Moreहुआ मौसम गुलाबी अब, चलो दीपक जलाएँ हम। घरों में धान आये हैं, दिवाली को मनाएँ हम। बढ़ी है हाट
Read Moreआओ फिर से हम नये, उपहार की बातें करें प्यार का मौसम है, आओ प्यार की बातें करें। नेह की
Read Moreदीवाली पर आओ मिलकर, नन्हें दीप जलायें हम घर-आँगन को रंगोली से, मिलकर खूब सजायें हम आओ स्वच्छता के नारे
Read Moreउग आये शैवाल गाँव के तालों में पेंच फँसें हैं उलझे हुए सवालों में करूँ समर्पित कैसे गंगा जल को
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