गीत “पीपल ही उद्गाता है”
देवालय का सजग सन्तरी, हर-पल राग सुनाता है। प्राणवायु को देने वाला ही, पीपल कहलाता है।। इसकी शीतल छाया में,
Read Moreदेवालय का सजग सन्तरी, हर-पल राग सुनाता है। प्राणवायु को देने वाला ही, पीपल कहलाता है।। इसकी शीतल छाया में,
Read Moreलड़की लड़का सी दिखें, लड़के रखते केश। पौरुष पुरुषों में नहीं, दूषित है परिवेश।। — देख जमाने की दशा, मन
Read Moreजिन्दगी आगे बढ़ेगी कब तलक काठ की हाँडी चढ़ेगी कब तलक लहर आयेगी बहा ले जायेगी सब रेत में मूरत
Read Moreसूरज की भीषण गर्मी से, लोगो को राहत दे जाता।। लू के गरम थपेड़े खाकर, अमलतास खिलता-मुस्काता।। डाली-डाली पर हैं
Read Moreसमय के साथ हम भी कुछ, बदल जाते तो अच्छा था। नदी के घाट पर हम भी, फिसल जाते तो
Read Moreठण्डी-ठण्डी हवा खिलाये। इसीलिए कूलर कहलाये।। जब जाड़ा कम हो जाता है। होली का मौसम आता है।। फिर चलतीं हैं
Read Moreहैवानों की होड़ अब, करने लगा समाज। खौफ नहीं कानून का, बदले रीति-रिवाज।। लोकतन्त्र में न्याय से, होती अक्सर भूल।
Read Moreज़रूरत बढ़ गईँ इतनी, हुई है ज़िन्दग़ी खोटी। बहुत मुश्किल जुटाना है, यहाँ दो जून की रोटी।। नहीं ईंधन मयस्सर
Read Moreजब गर्मी का मौसम आता, सूरज तन-मन को झुलसाता। तन से टप-टप बहे पसीना, जीना दूभर होता जाता। ऐसे मौसम
Read Moreजीवन की हकीकत का, इतना सा है फसाना खुद ही जुटाना पड़ता, दुनिया में आबोदाना सुख के सभी हैं साथी,
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