बालकविता “जीवन श्रम के लिए बना है”
चिड़िया रानी फुदक-फुदक कर, मीठा राग सुनाती हो। आनन-फानन में उड़ करके, आसमान तक जाती हो।। मेरे अगर पंख होते
Read Moreचिड़िया रानी फुदक-फुदक कर, मीठा राग सुनाती हो। आनन-फानन में उड़ करके, आसमान तक जाती हो।। मेरे अगर पंख होते
Read Moreलो साल पुराना बीत गया। अब रचो सुखनवर गीत नया।। फिरकों में था इन्सान बँटा, कुछ अकस्मात् अटपटा घटा। तब
Read Moreआपाधापी की दुनिया में, ऐसे मीत-स्वजन देखे हैं। बुरे वक्त में करें किनारा, ऐसे कई सुमन देखे हैं।। धीर-वीर-गम्भीर मौन
Read Moreमुश्किल हैं विज्ञान, गणित, हिन्दी ने बहुत सताया है। अंग्रेजी की देख जटिलता, मेरा मन घबराया है।। भूगोल और इतिहास
Read Moreअपनी माटी गीत सुनाती, गौरव और गुमान की। दशा सुधारो अब तो लोगों, अपने हिन्दुस्तान की।। खेतों में उगता है
Read Moreसुख का सूरज नहीं गगन में। कुहरा पसरा है कानन में।। पाला पड़ता, शीत बरसता, सर्दी में है बदन ठिठुरता,
Read Moreगाँव-गली, नुक्कड़-चौराहे, सब के सब बदनाम हो गये। कामी-कपटी और मवाली, रावण सारे राम हो गये।। रामराज का सपना टूटा,
Read Moreसब कुछ वही पुराना सा है! कैसे नूतन सृजन करूँ मैं? कभी चाँदनी-कभी अँधेरा, लगा रहे सब अपना फेरा, जग
Read Moreकुहरे की फुहार से, ठहर गया जन-जीवन। शीत की मार से, काँप रहा मन और तन। माता जी लेटी हैं,
Read Moreनीड़ में सबके यहाँ प्रारब्ध है सोया हुआ काटते उसकी फसल जो बीज था बोया हुआ खोलकर अपनी न देखी,
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