गीत/नवगीत

गीत “कैसे नूतन सृजन करूँ मैं?”

सब कुछ वही पुराना सा है!
कैसे नूतन सृजन करूँ मैं?

कभी चाँदनी-कभी अँधेरा,
लगा रहे सब अपना फेरा,
जग झंझावातों का डेरा,
असुरों ने मन्दिर को घेरा,
देवालय में भीतर जाकर,
कैसे अपना भजन करूँ मैं?
कैसे नूतन सृजन करूँ मैं?

वो ही राग-वही है गाना,
लाऊँ कहाँ से नया तराना,
पथ तो है जाना-पहचाना,
लेकिन है खुदगर्ज़ ज़माना,
घी-सामग्री-समिधा के बिन,
कैसे नियमित यजन करूँ मैं?
कैसे नूतन सृजन करूँ मैं?

बना छलावा पूजन-वन्दन
मात्र दिखावा है अभिनन्दन
चारों ओर मचा है क्रन्दन,
बिखर रहे सामाजिक बन्धन,
परिजन ही करते अपमानित,
कैसे उनको सुजन करूँ मैं?
कैसे नूतन सृजन करूँ मैं?

गुलशन में पादप लड़ते हैं,
कमल सरोवर में सड़ते हैं,
कदम नहीं आगे बढ़ते हैं,
पावों में कण्टक गड़ते है,
पतझड़ की मारी बगिया में,
कैसे मन को सुमन करूँ मैं?
कैसे नूतन सृजन करूँ मैं?

डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है