लघुकथा

बदलता रूप

बद्रीनाथ गुस्से से आग बबुला हो रहे थे ।
उनकी सोलह वर्षिया बेटी पिंकी ने आज ही कॉलेज में दाखिला लिया था । लगातार दस साल से एक ही तरह का गणवेश पहनने के बंधन से छुटकारा पाने से उत्साहित पिंकी ने कॉलेज जाने के लिए तीन जोड़ी नए कपडे ख़रीदे और घर में प्रवेश किया ।
बाहर बरामदे में ही खड़े बद्रीनाथ ने पिंकी के हाथों में लटके थैले को देखते हुए पुछा ” दाखिला हो गया बेटा ? और ये हाथ में क्या है ? ”
” जी ! पिताजी ! ये कुछ कपडे हैं जो मैंने अपने लिए ख़रीदे हैं कॉलेज जाने के लिए । ” पिंकी ने उत्साह से जवाब दिया था ।
उसके हाथों से थैला लेकर उसमें कुछ जीन्स के कपडे और कुछ नए फैशन के कपडे देखने के बाद बद्रीनाथ का पारा सातवें आसमान पर था ।
पिंकी को फटकार लगाते हुए बद्रीनाथ ने उसकी मम्मी को भी आड़े हाथों लेते हुए उन्हें भी जमकर सुनाया ।
पिंकी और उसकी मम्मी को जी भर डांट कर और उसके लाये कपड़ों को बाहर फेंककर अपनी भड़ास नीकाल चुके बद्रीनाथ अभी अभी आकर हॉल में बैठे थे कि रोहन के गाडी की आवाज सुनकर उन्होंने दरवाजे की तरफ देखा । दरवाजे पर उनका उन्नीस वर्षीय पुत्र रोहन टी शर्ट और जीन्स पहने हिप्पी कट बालों पर धुपी चश्मा चढ़ाये स्वीटी का हाथ थामे खड़ा था । रोहन की सत्रह वर्षीया गर्लफ्रेंड स्वीटी ने भी टॉप और मिडी पहन रखी थी । दोनों ही आधुनिक परिधान में किसी युरोपिय जोड़े की तरह लग रहे थे ।
उन्हें देखते ही बद्रीनाथ ने मुस्कान बिखेरते हुए कहा ” आओ बेटा ! घुम आये ? कैसा रहा सफ़र ? कोई परेशानी तो नहीं हुयी ? ”
दरवाजे की ओट में खड़ी पिंकी आँखों में बेबसी के आंसु लीये बद्रीनाथ के बदलते रूप को महसुस कर रही थी ।
अपनी सिसकियों के बीच वह रोहन का जवाब नहीं सुन सकी थी ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।