कुहरे की मार
कुहरे की फुहार से, ठहर गया जन-जीवन। शीत की मार से, काँप रहा मन और तन। माता जी लेटी हैं,
Read Moreकुहरे की फुहार से, ठहर गया जन-जीवन। शीत की मार से, काँप रहा मन और तन। माता जी लेटी हैं,
Read Moreनीड़ में सबके यहाँ प्रारब्ध है सोया हुआ काटते उसकी फसल जो बीज था बोया हुआ खोलकर अपनी न देखी,
Read Moreहमारा आवरण जिसने, सजाया और सँवारा है, हसीं पर्यावरण जिसने, बनाया और निखारा है। बहुत आभार है उसका, बहुत उपकार
Read Moreतन्त्र ये खटक रहा है। सुदामा भटक रहा है।। कंस हो गये कृष्ण आज, मक्कारी से चल रहा काज, भक्षक
Read Moreभटक रहा है मारा-मारा। गधा हो गया है बे-चारा।। जनसेवक ने लील लिया है, बेचारों का भोजन सारा। चरागाह अब
Read Moreश्राद्ध गये तो आ गये, माता के नवरात्र। लीला का मंचन करें, रामायण के पात्र।। — विजयादशमी साथ में, लाती
Read Moreलालची कुत्तों से दामन को बचाना चाहिए। अज़नबी घोड़ों पे बाज़ी ना लगाना चाहिए।। आज फिर खुदगर्ज़ करने, चापलूसी आ
Read Moreभूख के परिवेश में, गद्दार करते मस्तियाँ इक महल के वास्ते, बर्बाद करदी बस्तियाँ ज़ुल्मो-सितम के जोर पर, कब्जा किया
Read Moreबनाये नीड़ हैं हमने, पहाड़ों के मचानों पर उगाते फसल अपनी हम, पहाड़ों के ढलानों पर मशीनों से नहीं हम
Read Moreगहन अमावस में प्रकाश से गेह खिले हैं। त्याग-तपस्या की बाती को स्नेह मिले हैं। जगमग सजी दिवाली हर घर
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