दोहे “जीवन देती धूप”
फिर से कुहरा छा गया, आसमान में आज।आवाजाही थम गयी, पिछड़ गये सब काज।।—खग-मृग, कोयल-काग को, सुख देती है धूप।उपवन
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Read Moreपरम्पराएँ मिन्न हैं, लेकिन हम सब एक।कोई पेड़ा खा रहा, कोई खाता केक।।—खाने-पीने के लिए, सबके अपने तर्क।बीयर मांस-शराब को,
Read Moreआज विदेशी जाल में, जकड़ा हिन्दुस्तान।दूर गरीबों से हुआ, खादी का परिधान।।—चरखे-खादी ने दिया, आजादी का मन्त्र।बन्धक अर्वाचीन में, अपना
Read Moreरोटी का अस्तित्व है, जीवन में अनमोल।दुनिया में सबसे अहम, रोटी का भूगोल।।—जीवन जीने के लिए, रोटी है आधार।अगर न
Read Moreअब गमों में पल रही है जिन्दगीअश्क पीकर चल रही है जिन्दगी—कैसे करें हालात को अपने बयाँसर्दियों में जल रही
Read Moreजंगलों में जब दरिन्दे आ गये।मेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये।।—पूछते हैं वो दर-ओ-दीवार से,जिन्दगी महरूम क्यों है प्यार से?क्यों
Read Moreसन्नाटा पसरा है अब तो,गौरय्या के गाँव में।दम घुटता है आज चमन की,ठण्डी-ठण्डी छाँव में।।—नहीं रहा अब समय सलोना,बिखर गया
Read Moreसिर छिपाने के लिए, इक शामियाना चाहिएप्यार पलता हो जहाँ, वो आशियाना चाहिए राजशाही महल हो, या झोंपड़ी हो घास
Read Moreकल केवल कुहरा आया था,अब बादल भी छाया है।हाय भयानक इस सर्दी ने,सबका हाड़ कँपाया है।। भीनी-भीनी पड़ी फुहारें,झीना-झीना उजियारा।आग
Read Moreराह है काँटों भरी, मंजिल बहुत ही दूर हैदेख कुदरत का करिश्मा, आदमी मजबूर है—है हवाओं में जहर, आतंक का
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