ग़ज़ल “आदमी मजबूर है”
राह है काँटों भरी, मंजिल बहुत ही दूर हैदेख कुदरत का करिश्मा, आदमी मजबूर है—है हवाओं में जहर, आतंक का
Read Moreराह है काँटों भरी, मंजिल बहुत ही दूर हैदेख कुदरत का करिश्मा, आदमी मजबूर है—है हवाओं में जहर, आतंक का
Read Moreॉबनाये नीड़ हैं हमने, पहाड़ों के मचानों परउगाते फसल अपनी हम, पहाड़ों के ढलानों पर—मशीनों से नहीं हम हाथ से
Read Moreदोहे “जीवन के हैं मर्म” —मात-पिता को तुम कभी, मत देना सन्ताप।नित्य नियम से कीजिए, इनका वन्दन-जाप।।—आदिकाल से चल रही,
Read Moreदोहा छन्द अर्धसम मात्रिक छन्द है। इसके प्रथम एवं तृतीय चरण में तेरह-तेरह मात्राएँ तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में
Read Moreगीत “गंगा में स्नान करो” —गंगा में स्नान करो,कीचड़ में रहने वालो।अच्छे-अच्छे काम करो,ओ नवयुग के मतवालो।।—अपना भारत देशविश्व में
Read Moreहोने को अब जा रहा, जीवन का अवसान।कलुषित मन की कामना, बन्द करो श्रीमान।।—बढ़ती ज्यों-ज्यों है उमर, त्यों-त्यों बढ़ती प्यास।कामी
Read Moreस्वप्न पलते रहे, रूप छलते रहे।रोशनी के बिना, दीप जलते रहे।। अश्रु सूखे हुए, मीत रूठे हुए,वायदे प्यार के, रोज
Read Moreआम, जामुन, नीम-शीशम, जल गये हैं आग मेंकुछ कँटीले पेड़ ही अब, रह गये हैं बाग में—सुमन तो मुरझा गये
Read Moreबौरायें हैं सारे तरुवर, पहन सुमन के हार।मोह रहा है सबके मन को बासन्ती शृंगार।।—गदराई है डाली-डाली,चारों ओर सजी हरियाली,कुहुक
Read Moreवासन्ती मौसम आया है,प्रीत और मनुहार का।गाता है ऋतुराज तराने,बहती हुई बयार का।।—पंख हिलाती तितली आयी,भँवरे गुंजन करते हैं,खेतों में
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