मोक्ष
शब्दों में ढलती है आत्मादूर तक यात्रा करती हैदेखती है आग तोधुआं बन जाती हैदेखकर तितलीफूल बन जाती हैसागर के
Read Moreतोड़ सकते हो शिलाखण्ड प्रचंड प्रहार से रोक सकते हो नदी का प्रवाह तटबन्ध से पर मेरा अस्तित्व सिर्फ मेरे
Read Moreकेशों में अपने निशा तमस को रंग के, हाथों में नभ की लाली को भर के ये भोर किसी नार सी आती। निस्तब्ध
Read Moreअसर कुछ देर तक रहेगा हलचल मचाती जज़्बातों का फिर कुछ देर बाद बहेगी नदी ख़यालों की पहले की तरह
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