इमारत
कविताओं के शहर में एक छोटा सा, किराए का मकान है मेरा बड़ी ऊंची इमारते हैं यहाँ आसमान से बातें
Read Moreतोड़ सकते हो शिलाखण्ड प्रचंड प्रहार से रोक सकते हो नदी का प्रवाह तटबन्ध से पर मेरा अस्तित्व सिर्फ मेरे
Read Moreकेशों में अपने निशा तमस को रंग के, हाथों में नभ की लाली को भर के ये भोर किसी नार सी आती। निस्तब्ध
Read Moreअसर कुछ देर तक रहेगा हलचल मचाती जज़्बातों का फिर कुछ देर बाद बहेगी नदी ख़यालों की पहले की तरह
Read Moreकुछ कोशिशें बेकार हो ज़रूरी नही सब असरदार हो कठिन हो राह संघर्ष की और सफलता शानदार हो…. जीवन का
Read Moreहाँ! कविताएँ लिखती हूँ मैं क्योंकि मेरे अंदर एक बीज गड़ा है उपेक्षाओं, कुंठाओं शोक, हर्ष , हताशा जुगनू सी
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