अकेले
कभी जब होती हूँ बहुत अकेले ……. सोचती हूँ हर संबंधों को बहुत बारीकी से और इस निष्कर्ष पर पहुँचती
Read Moreजब भी लिखती हूँ कोई कविता सचित्र अवतरण होने लगता है फ़िजा में जिसमें डूबती हूँ उतरती हूँ कभी आर
Read Moreकिसी कवि की कल्पनाओं सी उन्मुक्त ……. उड़ने की आकांक्षा लिए हुए जहाँ तक हो बहाव बिखेरती अपने विचार जमाती
Read Moreफूल तुम्हारा हर बार खिलना पहली बार खिलने जैसा कौतुक,अचरज और विस्मय से भरा फूल तुम्हारा हर बार मुरझाना जैसे
Read Moreतुम यूँ ही रूठ जाते हो हरदम…… जरा सोचो ,कितना मुश्किल है संभालना खुद के जज्बातों को जैसे एक उम्र
Read Moreपूस की सर्द रातों में जब लोग दुबके होंगे रजाइयों में तुम भी अपनी उँगलियों से साकार कर रहे होगे
Read Moreतुम्हारी प्रतिविम्ब हैं वे रचनाएं, जिनकी तुम सृजन करते हो ….. वे पात्र जिनका तुम जिक्र करते हो , वो
Read Moreवक्त से एक लम्हा चुराकर जब मैं सोचती हूँ तुम्हें विस्मृतियों के पार मुझसे होकर गुजरती है तुम्हारी हर याद
Read Moreदूर देश से आई चिट्ठी उसमें थी वतन के मिट्टी की सोंधी खुशबू ख़त में थे माँ की स्नेहिल झिड़की
Read Moreमैं कवि हूँ , तुम कविता हो मेरी मैं लिखता हूँ, तुम से तुम तक मैं साज हूँ, तुम संगीत
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