ग़ज़ल
इक यही मंजर दिखाई दे रहा है हर तरफ़ बस ड़र दिखाई दे रहा है हो रहा है मजहबों के
Read Moreसाहिबे दस्तार होने चल दिए फूल भी अब ख़ार होने चल दिए यूँ बने रिश्ते तिजारत, आपसी मस’अले अख़बार होने
Read Moreसामने वो अगर नही आता चैन फिर रात भर नही आता कुछ किये बिन बुलंदियाँ पा लूँ मुझको ऐसा हुनर
Read Moreसाथ जिसके धार्मिक उन्माद आए ऐ ख़ुदा ऐसा नही जेहाद आए भूल कल कोई हुई होगी यक़ींनन आज फिर से
Read Moreतन-मन जीवन तक अर्पन कर न्यौछावर जो हुए वतन पर। उनको शीश झुका कर सौ- सौ बार नमन… जब दुश्मन
Read Moreधूप को चाँदनी नहीं लिखते आँसुओं को खुशी नहीं लिखते जो कलमकार हैं किसी हालत रात को दिन कभी नही
Read Moreबहुत बेचैन हैं कलियाँ गुलों का रंग फ़ीका है ये मंज़र साफ़ कहता है यकींनन ड़र किसी का है गुलों
Read Moreकुछ भी नही असम्भव जग में, जब करने की ठाने मन। चिंता छोड़ करो चिंतन बस, चिंता छोड़ करो चिंतन।।
Read Moreहाकिमों का दंभ बढ़कर आसमां छूने लगे जब। देश में जन क्राँति का उदघोष करना है जरूरी।। भूल कर जब
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