अभी तो मेंहदी सूखी भी न थी: पहलगाँव की घाटी में इंसानियत की हत्या
जम्मू-कश्मीर के पहलगाँव में हुए आतंकी हमले में जहाँ एक नवविवाहित हिंदू पर्यटक को उसका नाम पूछकर सिर में गोली
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Read Moreवो बर्फ से ढकी चट्टानों की गोद में,जहाँ हवा भी गुनगुनाती थी,जहाँ नदियाँ लोरी सुनाती थीं,आज बारूद की गंध बसी
Read Moreहर साल हजारों एकड़ फसल आग में जलकर राख हो जाती है, जिससे किसानों की मेहनत, उम्मीदें और जीवन प्रभावित
Read Moreबोल उठे बाबा बागेश्वर,“मृत्यु है मृगमरीचिका भर।शरीर छूटे, आत्मा हँसे,मोक्ष वही जो भय से न डरे।” धूप थी, भीड़ थी,
Read Moreआजकल लोग निजी झगड़ों और रिश्तों की परेशानियों को सोशल मीडिया पर लाइव आकर सार्वजनिक करने लगे हैं, जहां आधी-अधूरी
Read Moreजहाँ पठन-पाठन की बात थी,वहाँ चुप्पी की बारात थी।कक्षा में ना विचार बचे,बस ‘आदेशों’ की सौगात थी। दीवारों पर नहीं
Read Moreवर्तमान में, उच्च शिक्षा प्रणाली उद्योग की तेजी से बदलती आवश्यकताओं से मेल नहीं खाती, जिसके परिणामस्वरूप अधिकांश स्नातक रोजगार
Read Moreफूल चढ़े हर मोड़ पर, भाषण की झंकार।बाबा तेरे नाम पर, सत्ता करे सवार॥ मंच सजे, माला पड़े, भक्तों का
Read Moreजलियांवाला बाग हत्याकांड (1919) केवल ब्रिटिश अत्याचार का प्रतीक नहीं, बल्कि आज के भारत में सत्ता और लोकतंत्र के बीच
Read Moreक्यों जलियाँ की चीख सुन, सत्ता है अब मौन?लाशों से ना सीख ली, अब समझाये कौन॥ डायर केवल नाम था,
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