एक खीझ सी उठती है… मन के सरवर मेँ उठता झंझावर
एक खीझ सी उठती है, उन घर के मलबोँ के आगे सूरज खिलता है, सड़ती बस्ती के ऊपर जब चाँद
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Read Moreक्या सुनी आज तुमने चाँद की सिसकियाँ? आज आर्यावर्त के उत्तरी कोने मेँ चाँद छिपा रो रहा था, बार बार
Read Moreउसकी खौफनाक आँखेँ, जिसकी सफेद परतोँ पर अक्सर लाल रक्त धमनियां दिखती थीँ, अंदर धँसी हुयीँ। जिनका भौहोँ के साथ
Read Moreसपने मे मैने देखा एक बहुत खूबसूरत लडकी जिससे मैँ प्यार करता हूँ उसका भाई फिल्म डार्कनाइट के जोकर जैसा
Read Moreअब उनकी सिसकियाँ नीँद नहीँ तोडतीँ, उनकी चीत्कारेँ हृदय को नहीँ झकझोरती, रोज़ टीवी के चैनलोँ पर चीखती हैँ, अखबार
Read Moreराह तकी ना जाए दिन दिन बीते मन घट रीते कान्हा तुम ना आए राह तकी ना जाए। देख देख
Read Moreफिर कोई याज्ञसेनी प्रगटेगी, धर्म को अधर्म के विरुद्ध खडा करेगी, जब भरी सभा मे उसकी लज्जा तार तार होगी,
Read Moreअपने गाँव पर लिखी एक पुरानी छोटी सी कविता याद आ गयी आपके समक्ष रख रहा हूँ वो कोठरी का
Read Moreस्वामी विवेकानंद केवल एक व्यक्ति का नाम नहीं है, ये एक महान शक्ति का नाम है! ये विचार नहीं है,
Read Moreतम से घिरे हुए मन में या बाधाओं के काले वन में जब पथ ना कोई दिखता है अंतर्घट कविता
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