गंतव्य
ऐसा पहली बार हुआ, जब घर से कहीं बाहर निकली और उसे आभास हुआ कि कोई पीछे है किंतु, पलट
Read Moreठुकराई गई बेटियाँ बुआनैहर वापस आ तो जाती हैंपर वह पहले की भांतिचहकती बिल्कुल नहीं हैं। बोझ समझती हैं खुद
Read Moreछला तुमने हमारा दिल, मदन तुम हो बड़े छली।हमारा मन क्या उपवन है, बने फिरते हो तुम अलि।जहाँ पाते हो
Read Moreक्यों करना ऐसा हननकैसे उपजे है यह चिंतनक्यों होना इतना मुंहफटकर लेते कुछ तो मंथन। उपालम्भ और आलोचनाजायज है क्या
Read Moreवेदने तू यह बता देक्यों हृदय है श्रांत तेराचिर विरह की स्वामिनी तूक्यों है मन उद्भ्रांत तेरा। बस क्षणिक भर
Read Moreदेखा है पिता को सबकेअरमानों की झोली ढोते हुएउसे पूरा करने में खुद को खोते हुए| उफ्फ कभी नहीं कियाबच्चों
Read Moreक्यों मन मलिन तेरा सखेक्या याद किसी की आई है?बैठे हो सरि के कूल परदिखती तेरी परछाई है। क्योंकर अचंभित
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