पितृ पक्ष
यूँ तो दाना रोज खिलातीपंछी भी दाना चुग जातींगउवें भी देहरी पर आतींनिज हाथों से उन्हें खिलाती। धर्म कहता है
Read Moreसंस्कार,सदाचार विचार,आचारतू ही मेरा श्रृंगार। अलंकार,उपहारआकार निराकार. सब तेरे ही है प्रकारनदी,पोखर ताल तलैया तू ही सबकी खेवईयाशाखा, वल्लरी, द्रुम,
Read Moreसब ने उसको है चाँद कहा,अधरों को सुर्ख गुलाब कहा,कुंतल उसकी नागिन सी लगीसुन कर रह जाती है वह ठगी,सौंदर्य
Read Moreना जाने मेरे हृदय में क्या होता है, मैं खिंची चली जाती हूँ,जहाँ भी मेरे प्रिय फुल हरसिंगार की खुशबू
Read Moreएक ढलती शाम,आईना को किया साफ,उसने कहा देर से ही सही, आ गई पास।आई हो अब, जब घिर आई है
Read Moreठुकराई गई बेटियाँ बुआनैहर वापस आ तो जाती हैंपर वह पहले की भांतिचहकती बिल्कुल नहीं हैं। बोझ समझती हैं खुद
Read Moreछला तुमने हमारा दिल, मदन तुम हो बड़े छली।हमारा मन क्या उपवन है, बने फिरते हो तुम अलि।जहाँ पाते हो
Read Moreक्यों करना ऐसा हननकैसे उपजे है यह चिंतनक्यों होना इतना मुंहफटकर लेते कुछ तो मंथन। उपालम्भ और आलोचनाजायज है क्या
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