नटवर नागर
काश होता उस वक्त अवतरण उस इतिहास का करती विचरण जहाँ वृषभानुजा के संग रास रचाते थे किशन या फिर
Read Moreकैसे बताऊं, मेरी पहचान थी अनजान, लेखनी मेरी सिमटी डायरी के पन्नों में, मन की बातें उकेर देती, फिर उसी
Read Moreवो कहते हैं हमसे दे जाओ कोई निशानी बिन तेरे हमको है अब कुछ दिन बितानी आई थी जब तो
Read Moreमिल जाते हैं कुछ अनजान हो जाती फिर जान पहचान शायद रह गया कुछ अधूरा सा दे जाते वह अपने
Read Moreअब खुद में ही रम गयी बता तो दूं सारी बातें जता तो दूं सारी जज्बाते यशोधरा उर्मिला की भांति
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