Author: *प्रो. शरद नारायण खरे

कुण्डली/छंद

सूर्य पर केंद्रित छंद

दिव्य दिवाकर,नाथ प्रभाकर,देव आपको,नमन करूँ। धूप-ताप तुम,नित्य जाप तुम,करुणाकर हे!,तुम्हें वरूँ।। नियमित फेरे,पालक मेरे,उजियारा दो,पीर हरो। दर्द लड़ रहा,पाप अड़

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मुक्तक/दोहा

विज्ञान के दोहे

ख़ूब रचा विज्ञान ने,सुविधा का संसार। जीवन में सुख भर गया,दिखता जीवन-सार।। आना-जाना,परिवहन,लेन-देन,संचार। नए सभी कुछ हो गए,शिक्षा अरु व्यापार।।

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मुक्तक/दोहा

दोहे – संवेदना एक वरदान

जीवन में संवेदना,लाती है मधुमास। अपनाकर संवेदना,मानव बनता ख़ास।। संवेदित आचार तो,है करुणा का रूप।। जिससे खिलती चाँदनी,बिखरे उजली धूप।।

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