मुक्तक
(१) प्यार की बातें करता हूं मैं ,प्यार ही मेरा पेशा है । पर उनकी क्या बात करूं मैं,जिनको सब
Read Moreउजियारे को तरस रहा हूं,अँधियारे हरसाते हैं ! अधरों से मुस्कानें गायब,आंसू भर-भर आते हैं !! अपने सब अब दूर
Read Moreकब आओगे मेघ तुम,ये बतला दो आज। अब तो ला दो नीर तुम,हर्षित करो समाज।। तपती बस्ती आग से, सूरज
Read Moreदर्पण ने नग़मे रचे,महक उठा है रूप ! वन-उपवन को मिल रही,सचमुच मोहक धूप !! इठलाता यौवन फिरे,काया है भरपूर
Read Moreकलमकारिता लोकतंत्र का अविभाज्य अंग है। प्रतिपल परिवर्तित होनेवाले जीवन और जगत का दर्शन कराया जाना लेखनी द्वारा ही संभंव
Read Moreभारत के जनतंत्र की,गूंज रही जयकार। एक बार फिर से हुआ,मोदी का सिंगार ।। वह सच्चा सरदार है, जननायक,सरताज ।
Read Moreउजियारे को तरस रहा हूं,अँधियारे हरसाते हैं ! अधरों से मुस्कानें गायब,आंसू भर-भर आते हैं !! अपने सब अब दूर
Read Moreमाता सच में धैर्य है,लिये त्याग का सार ! प्रेम-नेह का दीप ले, हर लेती अँधियार !!पीड़ा,ग़म में भी रखे,अधरों
Read More