दोहे वर्तमान के
अंतर्मन में घुल गया,विष बनकर आघात ! सुबहें गहरी हो गयीं,घायल है हर रात !! धुंआ हो गयी ज़िन्दगी,हुई ख़त्म
Read Moreअंतर्मन में घुल गया,विष बनकर आघात ! सुबहें गहरी हो गयीं,घायल है हर रात !! धुंआ हो गयी ज़िन्दगी,हुई ख़त्म
Read Moreधुंध हो गया सारा जीवन,कुछ भी नज़र नहीं आता ! आशाएं अब रोज़ सिसकतीं,कुछ भी नज़र नहीं आता !! बाहर
Read Moreजीवन मुरझाने लगा, ऐसी चली बयार ! स्वारथ मुस्काने लगा, हुआ मोथरा प्यार !! बिकता है अब प्यार नित, बनकर के सामान !
Read Moreहे देव तुम क्यों हुए निद्रालीन ? क्योंकि, तुम्हारे निद्रामग्न होते ही यहां बढ़ गया ख़ूनख़राबा तेजी में आ गया
Read Moreउजियारे का वंदन होगा , रोज़- रोज़ अभिनंदन होगा ! विजय माल ग्रीवा में होगी, औ’ माथे पर चंदन होगा
Read Moreअँधियारे से लड़कर हमको,उजियारे को गढ़ना होगा ! डगर भरी हो काँटों से पर,आगे को नित बढ़ना होगा !! पीड़ा,ग़म
Read Moreबिखरी हो जब गंदगी,तब विकास अवरुध्द ! घट जाती संपन्नता,बरकत होती क्रुध्द !! वे मानुष तो मूर्ख हैं,करें शौच मैदान
Read Moreवंदन है,नित अभिनंदन है, हे गुरुवर नित तेरा । फूल बिछाये पथ में मेरे, सौंपा नया सबेरा ।। भटक रहा
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