व्यंग्य – गाली : एक सांस्कृतिक संपति
गालियाँ हमारी सांस्कृतिक विरासत है। यह ऐसी देव विद्या है जिसे जिज्ञासु, बिना किसी गुरुकुल, विद्यालय-विश्वविद्यालय में गए आत्म-प्रेरणा से
Read Moreगालियाँ हमारी सांस्कृतिक विरासत है। यह ऐसी देव विद्या है जिसे जिज्ञासु, बिना किसी गुरुकुल, विद्यालय-विश्वविद्यालय में गए आत्म-प्रेरणा से
Read Moreहोश संभाला है तब से यही उपदेश और शिक्षा मिलती रही कि शरीफ बनो। पिता जी के अनुसार गाली देनेवाले
Read Moreलोकतंत्र की धज्जी उड़ गयी, इस चुनाव की आँधी में शोर ‘चोर का’ चोर मचाए, इस चुनाव की आँधी में।
Read Moreभयंकर गरमी के बाद भी देश में कीचड़ हो गया है जिसके उन्नीस मई तक दलदल बन जाने की पूरी
Read Moreरंग बदलते चेहरे देखे, और बदलती देखी चाल नाखूनों में लहू लगा है, पर सबकी नीली है खाल। कहीं गरीबी
Read Moreकल्पना कुछ ऐसी है- देर रात थक कर लौटे पति को पत्नी नहीं चाहती कि वह जल्दी उठे ऐसे में
Read Moreमैंने हाईस्कूल में पढ़ा था कि भारत मानसूनी जलवायु का देश है। गलत है। मैं सुधारता हूँ- भारत चुनावी जलवायु
Read Moreअर्जुन और शिखंडी में मन, भेद नहीं कर पाता है राजनीति के हाट में बगुला, भगत बना मुसकाता है शब्द
Read Moreपाकिस्तानियों ! इमरान ख़ान को गालियाँ मत दो। हिन्दी में कहावत है-“हींग लगे न फिटकरी रंग भी चोखा आए” अर्थात्
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