दीप हूँ मैं
दीप हूँ मैं मैं मनुज के खोज की पहली कहानी जगत के उत्थान की मैं हूँ निशानी बिखर जाऊँ तो
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Read Moreजब-जब दीप जलेंगे, दीवाली भी तब-तब हो जाएगी। अंधकार की इस दुनिया में, नहीं उम्र होती है ज्यादा और सूर्य
Read Moreमानव जीवन के चार पुरूषार्थों में से एक है-अर्थ अर्थात् धन अर्थात् लक्ष्मी। पर एक प्रकार का धन और होता
Read Moreसागर मंथन के पश्चात् क्षीरसागर का वातावरण प्रायः शांत और सौम्य ही रहा करता था। भारतीय राजनीति में दल के
Read Moreकहते हैं मनुष्य के दिमाग में एक कीड़ा होता है, जो समय-बेसमय पर उसे काटता रहता है। उस दिन कीड़े
Read Moreकरवाँ-चौथ पर चाँद के माध्यम से उन सभी के लिए एक रचना जो चाँद में अपना प्रियतम तलाशते हैं और
Read Moreआज ‘शरद-पूर्णिमा’ है। प्रायः आप लोग आकाश में रात के समय कभी-कभी चंद्रमा के बहुत पास और साथ-साथ एक तारे
Read Moreहे बापू! दो अक्टूबर को हम फिर तुम्हारा जन्मदिन मना रहे हैं। पहले भी मनाते रहेे हैं, आगे भी मनाते
Read Moreथानेदार साहब को भैंस का दूध बहुुत पसंद था। वे अपना अपमान तो सह सकते थे, पर भैंसों की शान
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