कविता

नैन मंदिर हो गए

जब से तुम पलकों के पट में स्वप्न बन कर खो गए
नैन मंदिर हो गए हैं, अश्रू चंदन हो गए।
पुष्प मुसकानों के मेरे अधर ने अर्पित किए
धूप सांसों की समिधा ने समर्पिक कर दिया
हृदय की धड़कन मेरी भजनों के सुर में ढल गई
और मेरे प्यार ने शब्दों को कुमकुम कर दिया
श्लोक-सी ग़ज़लें मेरी और गीत वंदन हो गए
नैन मंदिर हो गए हैं, अश्रू चंदन हो गए।
मन मेरा बाती बना और तन दीए-सा जल रहा
आत्मा की लौ जला कर मैं उतारूँ आरती
प्यार में मैं तो तुम्हारे इस तरह जोगी बना
मन के माला की कड़ी हर तुमको ही तो पुकारती
तुमसे मिल कर हम प्रिये काशी औ मधुबन हो गए
नैन मंदिर हो गए हैं, अश्रू चंदन हो गए।
प्यार है आराधना और तुम मेरे भगवान हो
अपनी सांसों के सुमन मैं तुमको सब दे जाऊँगा
छोडकर मुझको अगर तुम राह में चली जाओगी
मैं तुम्हारे प्यार के बिन जीते जी मर जाऊँगा
पल दो पल के ये नहीं जन्मों के बंधन हो गए
नैन मंदिर हो गए हैं, अश्रू चंदन हो गए।

3 thoughts on “नैन मंदिर हो गए

  • जवाहर लाल सिंह

    मैं तुम्हारे प्यार के बिन जीते जी मर जाऊँगा
    पल दो पल के ये नहीं जन्मों के बंधन हो गए
    नैन मंदिर हो गए हैं, अश्रू चंदन हो गए। …….वाह! वाह!

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर कविता !

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