दिन को अगर रात कहो…
देश चाटुकारिता के स्वर्ण युग से गुजर रहा है। अकबर-बीरबल के एक किस्से के एक किस्से के अनुसार अकबर द्वारा
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Read Moreकहाँ कहा कब हमने यह कि, हम पर विपदा भारी है कहाँ कहा कब हमने यह कि, जीवन की दुश्वारी
Read Moreहमारे देश में बच्चे पैदा करना संवैधानिक के साथ धार्भिक और सांप्रदायिक अधिकार है। भला है कि विधाता ने मनुष्य
Read Moreभारत ‘खोरों’ का देश है। यहाँ का बचपन प्रायः चुगलखोर होता है। बड़ा होकर धनवान होने पर वह ‘सूदखोर’ बन
Read Moreविकट घड़ी है विपद बड़ी है, पर तू न घबराना अंगारों के सीने पर, चलकर भी तू मुसकाना। बाधाएँ बन
Read Moreकुर्सी का झगड़ा भारतवर्ष का सांस्कृतिक उत्सव है। आप इसे संस्कार भी कह सकते हैं। जो कुर्सी मोहनलाल चाहता था,
Read Moreयह सार्वभौमिक और सर्वविदित सत्य है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसके पूर्वज जंगली और उसके भी पहले बंदर
Read Moreभारत माँ की लाज बचाने, हर इक पहरेदार बनो चोरों को देकर मत अपना, तुम भी ना गद्दार बनो ।
Read Moreकिवदंती है कि प्रत्येक मनुष्य के जिह्वाग्र पर चौबीस घंटों की अवधि में सरस्वती एक बार अवश्य बैठती है। मैं
Read Moreजब चोर-उचक्के और मवाली, घर-घर पूजे जायेंगे जब कानूनी षड्यंत्रों को बुन, नेता जाल बिछाएँगे जब देशद्रोहियों की मौतों पर,
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