नवजात-बाली
बैरन बन छाती क्यो, तू रे हवा मतवाली? हिलौर न मुझको वेग से, मैं अभी “नवजात-बाली” हृदय हूँ विश्वंभर का, आत्मजा
Read Moreबैरन बन छाती क्यो, तू रे हवा मतवाली? हिलौर न मुझको वेग से, मैं अभी “नवजात-बाली” हृदय हूँ विश्वंभर का, आत्मजा
Read More“हृदय तंतु सन्न हुए। कितने आक्षेप उत्पन्न हुए। प्रेम और संदेह एक साथ कैसे रहते? प्रेम-परीक्षा में इतने प्रश्न हुए।
Read Moreअब प्रेम ही विष बरसाने वाला है। हृदय के हर तंतु को झुलसाने वाला है। “मीरा” का प्रेम कालकूट में
Read Moreतिमिर भरें जग में छा गई अमावश काली। तरू विगलित हुएं सूखें पत्तें सूखी डाली।। “प्रिय” कैसे रूठे तुम? भीगी
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