कविता

मीरा प्रेम

अब प्रेम ही विष बरसाने वाला है।
हृदय के हर तंतु को झुलसाने वाला है।
“मीरा” का प्रेम कालकूट में डूबा,
अब कहाँ कोई कृष्ण आने वाला है॥
प्रेम चदरिया फट गई
सिये किस धागे से????
सुन्न है पौर-पौर प्रेम का
कह दो उस अभागे से।
निर्ममता की कटार से
कोई शोणित बहाने वाला है।
अब कहाँ कोई कृष्ण आने वाला है॥
घुटन श्वास की जब
एकदम घुट जायेगी।
आखरी प्रतिक्षा की लौ भी
जब बुझ जायेगी।
“श्रीप्रेम” में घुटकर अब
जीवन भी जाने वाला हैं।
अब कहाँ कोई कृष्ण आने वाला है॥॥

— सोनाश्री