बैरन बन छाती क्यो, तू रे हवा मतवाली? हिलौर न मुझको वेग से, मैं अभी “नवजात-बाली” हृदय हूँ विश्वंभर का, आत्मजा मान जिसने पाली, प्रकृति मेरी माता, भाई-बहन हर पत्ता-डाली। उन्मत्त ना होना देख मुझे, वरना दूँगी तुझको गाली। रूई के फाहों सी चलना, मत बनना अभी घटा-काली। बन जाऊ तरूणी, भर दूँ सारे पेट खाली। […]
Author: सोना श्री
प्रेम-परीक्षा
“हृदय तंतु सन्न हुए। कितने आक्षेप उत्पन्न हुए। प्रेम और संदेह एक साथ कैसे रहते? प्रेम-परीक्षा में इतने प्रश्न हुए। परीक्षा की अग्नि में जल गई वेदना भी। टूट कर विछिन्न् हुई प्रेम की नवचेतना भी॥ इतनी मर्माहत देकर भी “प्रिय” ना प्रसन्न हुए। प्रेम-परीक्षा में इतने प्रश्न हुए। स्मृतियों की ख़ोह में ऐसे-ऐसे उर […]
मीरा प्रेम
अब प्रेम ही विष बरसाने वाला है। हृदय के हर तंतु को झुलसाने वाला है। “मीरा” का प्रेम कालकूट में डूबा, अब कहाँ कोई कृष्ण आने वाला है॥ प्रेम चदरिया फट गई सिये किस धागे से???? सुन्न है पौर-पौर प्रेम का कह दो उस अभागे से। निर्ममता की कटार से कोई शोणित बहाने वाला है। […]
प्रिय कैसे रूठे तुम
तिमिर भरें जग में छा गई अमावश काली। तरू विगलित हुएं सूखें पत्तें सूखी डाली।। “प्रिय” कैसे रूठे तुम? भीगी अश्रुतित चुनर धानी। मुख मोड़ “श्री” रिक्त किया हृदय रह गया बस आकार खाली♡ सुवास छीनी हृदय-गुलाब की क्या करेगा अब वनमाली? प्रेम विमुख भये “प्रिय” नृत्य भुली “सोना” निराली।। हाव-भाव सब प्रीत पर भुलाई […]
पाजेब
“गुलाबी प्रात,यौवन की नींद को देखो,जगा गई। अलंकृत गदरायी काया को कैसा मोह लगा गई? सहज़ ही तो जागी थी मैं कहाँ से आया पाजेब वाला? जिसने हृदय निःसृत वाणी से कर दिया मतवाला।। तीर सी भागी मैं बाहर की और पीट ताली। इस हलचल मे जाने कब गिरी सोने की बाली।। चाँदी की सफ़ेद […]