मोबाइल
झांकते रहते हैं दिन रात लोग इसमें मोबाइल खिड़की बन गया है… देखता कोई दूसरों की जिंदगी इसमें कोई अपनी
Read Moreमेरा दुश्मन कौन है मैं पहचानता भी नहीं लड़ता हूं अंधाधुंध वैरी कौन जानता भी नहीं खुद जानने का वक्त
Read Moreदुर्दिन पर किसी के ऐसे न मुस्कुराइए दिन बदलते लगती न देर मत भुलाइए ऊंँचाई पर जो है फिर नीचे
Read Moreहुनर कितने हालात की भट्टी में , जल रहे , संभावनाएं कितनी ही , बेढ़ंगे नियम निगल रहे , प्रशासन
Read Moreमहात्मा कबीर का पालन पोषण एक जुलाहे के घर हुआ था और उन्होंने स्वयं भी उसी पेशे को अपनाया
Read Moreउस युग में भगवान ने , माया का जाल बनाया था । नारद जी को उसमें , गोल गोल घूमाया
Read Moreमन के दशरथ को संभाल ले ! दिख जाए जिस दिन सफेदी ठान ले ! तन के दशरथ की लगाम
Read Moreएक रास्ता था। दो पैर थे। चलते जाते थे। रोज नया गीत गाते थे। बड़े हुए फिर रुके, चलते चलते
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