कविता

जीवन संघर्ष

मेरा दुश्मन कौन है मैं पहचानता भी नहीं
लड़ता हूं अंधाधुंध वैरी कौन जानता भी नहीं
खुद जानने का वक्त नहीं पाता
कोई बताता है तो फिर मानता भी नहीं
अंधेरों में लड़ रहा हूं हद से गुजर रहा हूं अपनी हदें है क्योंकि मैं जानता भी नहीं
चाहूं तो उजालों से भर लूं जिंदगी अपनी
पर मन वश में नहीं तो कुछ ठानता भी नहीं

— सुनीता द्विवेदी
कानपुर उत्तरप्रदेश

सुनीता द्विवेदी

होम मेकर हूं हिन्दी व आंग्ल विषय में परास्नातक हूं बी.एड हूं कविताएं लिखने का शौक है रहस्यवादी काव्य में दिलचस्पी है मुझे किताबें पढ़ना और घूमने का शौक है पिता का नाम : सुरेश कुमार शुक्ला जिला : कानपुर प्रदेश : उत्तर प्रदेश