कविता *वर्षा वार्ष्णेय 14/06/202015/06/2020 कान्हा ओ कान्हा ओ कान्हा धुन पर तेरी थिरकना हर पल दिल को क्यों भाता है मैं हूँ तेरी तू है Read More
कविता *वर्षा वार्ष्णेय 13/05/202013/05/2020 कविता हसीन दरख्तों के निशान भी जब जमीन को चुभने लगें मुमकिन है दरख्तों का जिंदा रहना क्या हुआ जो धरती Read More
कवितापद्य साहित्य *वर्षा वार्ष्णेय 13/05/2020 उम्मीद दामन में छिपाए बैठे थे उम्मीदों के आसमां बेरुखी ने जमाने की कुछ यूँ तन्हा कर दिया सोचा भी Read More
कवितापद्य साहित्य *वर्षा वार्ष्णेय 13/04/2020 रेत का बुलबुला तन्हाइयों में अक्सर होता है ऐसा आजकल खुद ही रोती हूँ, खुद ही चुप हो जाती हूँ दौर ऐसा भी Read More
कविता *वर्षा वार्ष्णेय 13/03/2020 जख्म भर जाते होंगे वक़्त के साथ यादों के गहरे जख्म भी , भुला देता होगा आसमान भी बूंदों की बेबफाई Read More
कविता *वर्षा वार्ष्णेय 13/03/2020 अवशेष जब भी हर्फ़ों को कागज पर उतारना चाहा , तुम और तुम्हारे जज्बात आँखों में उतर आये / कलम दौड़ती Read More
कविता *वर्षा वार्ष्णेय 19/02/202027/02/2020 दर्द जब भी हर्फ़ों को कागज पर उतारना चाहा तुम और तुम्हारे जज्बात आँखों में उतर आये कलम दौड़ती रही दीवारों Read More
कविता *वर्षा वार्ष्णेय 19/02/2020 सुकून तुम मुझे मेरा सुकून लौटा दो वो खोया हुआ समय लौटा दो । रखा था संभालकर बरसों से वो मेरा Read More
क्षणिका *वर्षा वार्ष्णेय 18/01/202019/01/2020 क्षणिकाएँ 1 आंसूओं ने भी सीख लिया है चुपचाप बहना, क्यों रुलाये और किसी को गम तो अकेले है सहना। 2 Read More
गीत/नवगीत *वर्षा वार्ष्णेय 18/01/2020 नफ़रत लहू बनकर बहती है मोहब्बत जहाँ आज भी जिस्म में , जाने कैसे नफरत से यारी कर लेते हैं लोग Read More