आत्मकथा : मुर्गे की तीसरी टांग (कड़ी 40 और अंतिम)
शाम तीन बजे मुझे पर्सनल विभाग में बुलाया गया था, वहाँ कई औपचारिकताएँ पूरी हो गयीं, लेकिन एक बात पर
Read Moreशाम तीन बजे मुझे पर्सनल विभाग में बुलाया गया था, वहाँ कई औपचारिकताएँ पूरी हो गयीं, लेकिन एक बात पर
Read Moreकुछ दिन पहले से बहुत शोर मच रहा था कि देश में (वह भी देश की राजधानी में) गोडसे का
Read Moreअध्याय-12 : बदलते रास्ते जो था मेरा हाले दिल वो बयां हुआ जुबां से। जो कहेंगे अश्के-रंगी वो अलग है
Read Moreइसी बीच एक दिन मेरे भाई डा. राममूर्ति सिंघल भी मुझसे मिलने जेल में आये। मेरा काफी दिन तक पत्र
Read Moreतब किसी अध्यापक की पत्नी ने या शायद कुलपति की बेटी ने दिल्ली दरबार में फरियाद की। मुझे अच्छी तरह
Read Moreअभी मेरा कम्प्यूटर का काम पूरा नहीं हुआ था, अतः मुझे उसमें जुट जाना था। लेकिन इससे पहले मुझे दो-तीन
Read Moreभारत माता की वंदना करने के लिए यह गीत मैंने कई वर्ष पहले लिखा था. इसे पहली बार प्रकाशित कर
Read Moreउस वर्ष असम आन्दोलन जोर-शोर से शुरू हो गया था। हमारी सहानुभूति स्वाभाविक रूप से आन्दोलनकारियों के साथ थी, क्योंकि
Read Moreअध्याय-11: किस किस के हाथों में गुनहगारों में शामिल हूँ गुनाहों से नहीं वाकिफ सजा पाने को हाजिर हूँ खुदा
Read Moreसिर की मंडी में हमारी शाखा का नाम था ‘ध्रुव प्रभात’ और हमारे मुख्य शिक्षक थे श्री मुरलीधर जी ओझा।
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