आत्मकथा : मुर्गे की तीसरी टांग (कड़ी 37)
तब किसी अध्यापक की पत्नी ने या शायद कुलपति की बेटी ने दिल्ली दरबार में फरियाद की। मुझे अच्छी तरह
Read Moreतब किसी अध्यापक की पत्नी ने या शायद कुलपति की बेटी ने दिल्ली दरबार में फरियाद की। मुझे अच्छी तरह
Read Moreअभी मेरा कम्प्यूटर का काम पूरा नहीं हुआ था, अतः मुझे उसमें जुट जाना था। लेकिन इससे पहले मुझे दो-तीन
Read Moreभारत माता की वंदना करने के लिए यह गीत मैंने कई वर्ष पहले लिखा था. इसे पहली बार प्रकाशित कर
Read Moreउस वर्ष असम आन्दोलन जोर-शोर से शुरू हो गया था। हमारी सहानुभूति स्वाभाविक रूप से आन्दोलनकारियों के साथ थी, क्योंकि
Read Moreअध्याय-11: किस किस के हाथों में गुनहगारों में शामिल हूँ गुनाहों से नहीं वाकिफ सजा पाने को हाजिर हूँ खुदा
Read Moreसिर की मंडी में हमारी शाखा का नाम था ‘ध्रुव प्रभात’ और हमारे मुख्य शिक्षक थे श्री मुरलीधर जी ओझा।
Read Moreअध्याय-10: सेवा धर्म कठिन जग माहीं काँटा लगे किसी को तड़पते हैं हम अमीर। सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर
Read Moreअपने स्कूल की राजनीति में तो मैं सक्रिय और प्रमुख भाग अदा करता ही था, विश्वविद्यालय स्तरीय राजनीति में भी
Read Moreकिसी शायर ने लिखा है- पीके मदहोश तो हुए थे हम भी पर ये रिन्दों के जनाजे कहाँ देखे थे?
Read Moreउस वर्ष 1981 में छात्र संघ के चुनावों में मैंने अपने स्कूल से श्री बी. राजेश्वर का पार्षद पद के लिए
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