‘बिखरे शब्द
बिखरे शब्द बार बार दिखते थे टकराते थे मेरी कलम से फिर न जाने क्यों लौट जाते थे, शायद मैं
Read Moreबिखरे शब्द बार बार दिखते थे टकराते थे मेरी कलम से फिर न जाने क्यों लौट जाते थे, शायद मैं
Read Moreगाँव की औरतें…. जितना चाहती हूँ उस बात को भूल जाना उतना ही याद आता गाँव की उन हमउम्र औरतों
Read Moreयाद उन दिनों की दिल से जाती ही नहीं, वो मुस्कुराहट अब चेहरे पर आती ही नहीं। कच्ची उम्र की
Read Moreऐ दोस्त! मेरी छोटी सी तनख्वाह मेरे घर में घुसने से डरती है, परिवार की फरमाइशें, बिलों की लिस्ट जो
Read Moreचाटुकारों चापलूसों की बहुत चलती है यही बात तो दफ्तर की मुझे खलती है इन्हे आता है बस मक्खन लगाना
Read Moreतपे जेठ दुपहरिया संझा गरम बयरिया। भोर ,शीतलता खोती रातें मुंह ढ़क के रोती। धरती का जलता सीना पशु पक्षियों
Read Moreदिल तो आखिर दिल है, दिल ही दिल में कैसे पल दो पल में, क्या से क्या हो जाता है,
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