कविता : सपनों का बाज़ार
नैतिकता का आधार सुनायी देता है जीते जी सब निष्काम दिखायी देता है जीवन का सारांश नहीं कुछ भी साहब
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Read Moreअक्षपाद औ’ कणाद युग में रही नहीं कभी जाति – प्रथा किसने किया इसे अनावृत जो आज बनी है व्यथा-कथा
Read Moreसुशासन बाबू के कुशासन का चर्चा चारो ओर है महागठबंधन बनने के बाद प्रगति रथ पे रोक है शराब बंदी
Read More_________ “”तू अपने ग़म से आज़िज है मैं तेरे ग़म से अफ़शुर्दा तू है मशग़ूल औरों में मैं तुझ बिन
Read Moreदूर तलक अकेलापन अन्तःतल तक ध्वनि रहित रिक्तता स्नेह -लगाव का अभाव प्रेम की लालसा बेबस और लाचार पथराई आँखों
Read Moreचाँद क्या है रात से पूछो जमीं क्या है आसमान से पूछो दर्द क्या है इश्क के अरमान से पूछो
Read Moreनाव छूट ही जाते हैं मन के मन के लिए डूबता तैरता रहता हूं तुम्हारी नदियों में दिन भर के
Read More“बसंती दादूर” के वचन । कभी कोई सुनता नहीं।। लिखता हूं रातें जगजग कर। कमबख्त फिर भी छपता नहीं।। रचनाएँ मेरी
Read Moreमैं प्यार हूँ जी हाँ मैं प्यार हूँ, दिल मेरा बसेरा है.. पर आज मैं भटक रहा हूँ यहाँ से
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