कविता : फिर आई है हिचकी
स्त्री हिचकियाँ की सखी साथ फेरो का सकल्प दुःख सुख की साथी एकाकीपन खटकता परछाई नापता सूरज पहचान वाली आवाजों
Read Moreस्त्री हिचकियाँ की सखी साथ फेरो का सकल्प दुःख सुख की साथी एकाकीपन खटकता परछाई नापता सूरज पहचान वाली आवाजों
Read Moreपूछती हैं गलियां पूछते हैं गाँव- चौबारा क्या आयेगा गाँधी दोबारा !! पूछती हैं नदियाँ पूछता है लोकतंत्र हमारा क्या आयेगा
Read Moreमहिमा माँ की पावनी, गई शरद ऋतु आय नव रजनी नव शक्ति की, नव दुर्गा हरषाय नव दुर्गा हरषाय, धरे
Read Moreआज बिन मौसम की जिद्दी बारिश,बरसी है मेरे आँगन में ……… भिगो गयी सब कुछ…अंदर -बाहर..कुछ न बचा, अब सूखा
Read Moreमैं दीया हूँ, रात भर टिमटिमाता रहा हूँ, जलाकर तेल औ’ बाती, तम मिटाता रहा हूँ जानता हूँ कुछ पल
Read Moreगौतम बुद्ध बोले सहन करो हम उनकी बात को मानेंगे उनकी बातों की गहराई हम बहुत जतन से जांचेंगे कुछ
Read Moreजब 56 इंची सीनों ने गोलियाँ रायफलों से दागीं दहशतगर्दों के अब्बू भागे और अम्मी खौफ से काँपीं ये तो
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