कविता : माई
है धन्यवाद उस पत्थर को जिससे पाँवों ने चोट खायी हैं हृदय में तीखा दर्द उमड़ा है आँखों से बूँदे
Read Moreहै धन्यवाद उस पत्थर को जिससे पाँवों ने चोट खायी हैं हृदय में तीखा दर्द उमड़ा है आँखों से बूँदे
Read Moreहै उम्र गुज़ारी हमने, किताबों के सफ़र में ! जिन्दगी को सुलझाना, हमें आता ही नहीं हैं !! न जाने
Read Moreन छेड़ो जख्मों को, लगेंगे फिर से रिसने ! वो जुदा हो रहें हैं हमसे, पर वह इसे मानते नहीं
Read Moreचित्र अभिव्यक्ति आयोजन चाहे काँटें पथर पग, तिक्ष्ण धार हथियार पुष्प प्रेम सर्वत्र खिले, का करि सक तलवार का करि
Read Moreधुंध और धूप का रिश्ता विचित्र है दोनों शब्द ‘ध’ वर्ण से सृजित हैं यद्यपि दोनों का कोई मेल नहीं
Read Moreमाँ ! अब तो बेटे पर तरस खाओ उसे इतना मत डराओ । नादान पुत्र है कर दिया होगा
Read More( ढेल- मोरनी, टहूंको- मोर की बोली) नाचत घोर मयूर वन, चाह नचाए ढेल चाहक चातक है विवश, चंचल चित
Read Moreयह चार पदों(पंक्तियों मे) लिखा जाने वाला वार्णिक छंद है। 8/8/8/7 पर यति अर्थात प्रति पंक्ति 31 वर्ण, भाव प्रभाव
Read Moreलाला का यह जन्म दिन, रोहिणि खासम खास बुधवारी तिथि पावनी, गुरूवार उपवास गुरुवार उपवास, उदित यह महिमा भारी मथुरा
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