“मुक्तक”
प्रदत शीर्षक- दर्पण ,शीशा ,आईना,आरसी आदि शीशा टूट जाता है, जरा सी चोट खाने पर दरपन झट बता देता, उभरकर
Read Moreलाली उगी सुबह लिए, पूरब सूरज तात नवतर किरणें खेलती, मन भाए प्रभात मन भाए प्रभात, निहारूँ सुन्दर बेला भ्रमर
Read Moreख़ुशी मिली है ख़ुशी मिली है यारों मुझको ख़ुशी मिली है…… मेहनत लगन अधीर हुई थी करम करत तन पीर
Read Moreपंछियों की तरह हो यह जीवन ऊंची उड़ान, न हो कोई बंधन ! न सीमाओं का घेरा हो कोई न
Read Moreचोंच है मेरी लाल लाल और पंख हैं मेरे हरे आज बताता हूँ मैं तुमको जख्म हैं कितने गहरे ।
Read Moreकुछ लोग साबुन से साबुन को धुलवाते हैं पानी के बिना ही जी भरकर नहाते हैं तौलिए के बिना भी
Read Moreऊंची इमारतों से निकलता धुआँ, पीले पड़े तमाम शाखों के पत्ते, ये ही तो शहर है , जहाँ हर चीज़
Read Moreदेश की तरफ आँख उठा कर देखे दुश्मन जो कोई , जा पड़े आँख में हम शोला बन उसकी शामत
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