कवितापद्य साहित्य

~~हर दिल में हो देश के प्रति प्यार भरा ~~

देश की तरफ आँख उठा कर देखे दुश्मन जो कोई ,
जा पड़े आँख में हम शोला बन उसकी शामत आई।

भरा है प्यार का दहकता अंगार दिल में हमारे ,
स्वदेश के प्रति सम्मान भरा अधिकार दिल में हमारे |

देश के लिए मर मिटने का जूनून था कभी दिल में हमारे ,
आज स्वप्रेम के मोह में देशप्रेम हो गया है एक किनारे |

पर आज देश की देख यह हालत गर्व के बजाय अफ़सोस है ,
जिसके लिए मर मिटे हम भूलकर हमें ही वह मदहोश है |

जिस देश के लिए हँसते हँसते खाई हमने अपने सीने पर गोलियां,
उसी मेरे प्यारे देश को बेच रही हैं यहाँ अराजक तत्वों की टोलियां|

खोखला कर स्वदेश को अपना ही घर माल से भर रहें हैं ये नेता
क्यों देश-भक्ति के बजाय भर गयी हैं इनमें इतनी अधिक लोलुपता |

चूमकर झूल गए थे फांसी के फंदे पर कुछ भी न निकली बोलियाँ,
उदास बहुत ये मन बढ़ता हुआ देख देश में गरीबों की खोलियां|

प्यार के बजाय दिल में धधक रही है अब ज्वाला समझो
कहीं ऐसा ना हो कि कब्र से उठकर जला दे हम तुमको | सविता मिश्रा

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|