कविता : बूढ़ी औरत
वो बुढी औरत जो दोनो ऑखो से अँधी दिन रात फुटपाथ पर पडी रहती जैसे उसका कोई न हो सिर्फ
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Read Moreमेरे आने का इंतजार क्या तुम्हे है मेरे बिन तुम्हारा हर पल क्या सावन है मै तो हर पल तेरे
Read Moreकिसे सुनाऊँ मै अपना दुःख दर्द कौन है मेरा सुननेवाला करूण पुकार छुपा कर दिलो मे हजारो जख्म मै अन्दर
Read Moreहा इसी पलको पर कभी सजायी थी हजारो ख्वाब आज टूट कर बिखर गये मेरे सारे ख्वाहिशे जब तु ही
Read Moreमै अक्सर धोखा उन्ही से खायी जिन्हे मै रिश्तो में खास पायी ये झुठ मुठ के बनाम रिश्ता लगता है
Read Moreदूनियॉ मे हजारो लोग मिलते है बस तुम्हे गिराने को सोचते है जैसे तुम उठने की कोशिष करो झट अपनी
Read Moreये चॉद आज यु ही चमकना मेरे घर ऑगन को आलोकित कियें रहना था जिसका इंतजार वर्षो से आज आना
Read Moreक्यो तुमने सोच लिया मै तुम्हे भूल जाऊँगी तेरे बिन मै तन्हा कैसे रह पाऊँगी यह बंधन है प्रेम का
Read Moreदुकान काका की पुश्तैनी है, पुरखों की वह निशानी है, वह उन दिनों से उनकी है संगी, जब परिवार पर
Read Moreअतुकान्त रचना रास छन्द पर आधारित [८+८+६] जीवन मनका, प्राण आधार निहित वृक्ष माया नगरी प्यार संतान सहज चित्र अनुपम
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