कविता

क्यो तुमने सोच लिया…

क्यो तुमने सोच लिया
मै  तुम्हे भूल जाऊँगी
तेरे बिन मै तन्हा
कैसे रह पाऊँगी
यह बंधन है प्रेम का
कभी टुटने न दूँगी
कदम से कदम मिलाकर
हमेशा साथ निभाऊँगी
चाहे हजारो लोगो से
भरी रहे ये महफिल
फिर भी एक तुम्हे न रहने सें
ये महफिल भी विरान सी लगती है
हर रात तेरा ही ख्वाब सजाती हूँ
हर दिन तेरे ही याद में काटती हूँ
एक क्षण भी ऐसा नही
जिसमे तेरा नाम नही
फिर भी तुम कैसे कहते कि
मुझको कोई याद करता नही|
      निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४