मेरी कहानी – 42
मास्टर विद्या प्रकाश और मूलराज के बाद पंजाबी के टीचर आनंदपाल सिंह होते थे, बहुत हंसमुख, बूटिओं वाली पगड़ी और कोट
Read Moreमास्टर विद्या प्रकाश और मूलराज के बाद पंजाबी के टीचर आनंदपाल सिंह होते थे, बहुत हंसमुख, बूटिओं वाली पगड़ी और कोट
Read Moreहमारे इम्तिहान हो गए थे और हम गाँव में घूमते रहते। जैसे अक्सर होता है, उम्र के बढ़ने के साथ ही हमारा
Read Moreहमारी मिडल स्कूल की पढ़ाई आख़री दिनों तक आ पौहंची थी। हमारे टीचर साहेबान अपना सारा धियान हम पर लगाए हुए थे
Read Moreमेरे जैसे इंसान के लिए स्वजीवनी लिखना इतना आसान नहीं है क्योंकि अपनी कहानी लिखने के लिए सचाई लिखनी पड़ती
Read Moreदुनिआ में सब कुछ भूल सकता है लेकिन एक ऐसी चीज़ है जो किसी को नहीं भूलती , वोह है “माँ”।
Read Moreदादा जी की यादें बहुत हैं ,इसी लिए वोह हर घड़ी याद आते रहते हैं। उन को पशुओं से बहुत स्नेह था।
Read Moreमेरे दादा जी बहुत सख्त मिहनती थे। हो सकता है कि उन्होंने बहुत मुसीबतें देखीं थी , इस लिए. यह
Read Moreवैसे तो मेरे पिता से मेरी अनेकों वार्तालाप हुई जो काफी शिक्षाप्रद, प्रेरणादायी,एवं आदर्श जीवनशैली से परिपूर्ण होती थी .!
Read Moreमेरे पिताजी एक साधारण किसान हैं। धैर्य, साहस, ईमानदारी और वात्सल्यता ही इनकी पहचान है। अपने खून-पसीने,स्नेह-प्यार से सिंच कर
Read Moreतल्हन गुरदुआरे से बाहिर निकल कर हम उस डेरे की ओर जाने लगे यहां एक सिंह जी लोगों की मुश्किलें
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