“गज़ल”
रातों की रानी ने कैसी अलख जगाई है चंचल कलियाँ भी मादक महक पिराई है बागों का माली चंहके
Read Moreदोस्त सब अपने पुराने छोड आया हूं। ज़िन्दगी के सब तराने छोड आया हूं॥ गाँव का तालाब पीपल की घनी
Read Moreचेहरे पर चेहरा लगाकर जी रहा है आदमी। खुद से भी खुद को छुपाकर जी रहा है आदमी॥ कहने को
Read Moreरास्ते अंजान से है हमसफ़र कोई नही। भीड है काफी यहाँ अपना मगर कोई नही॥ देख कर उसको लगा की
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