कविता : मर्यादा
क्यों मर्यादा की… चादर ओढ़े, दिन-रात यूँ ही… घुट -2 के जियूँ ! क्यों अोड़ … आडम्बर की चादर, जहर
Read Moreक्यों मर्यादा की… चादर ओढ़े, दिन-रात यूँ ही… घुट -2 के जियूँ ! क्यों अोड़ … आडम्बर की चादर, जहर
Read Moreमुद्दत बाद आज आंसू पोंछ भी रहे हो तो क्या ‘मंजु’ सारी उम्र का तो वादा नहीं किया तुमने ‘मंजु’
Read Moreरंगो भरी खुशियाँ बिखेरने आई ये होली सब में प्यार बाँटने आई ये होली मगर रंगो में कुछ फीका है
Read Moreजिनको कभी थे… हम नज़रंदाज़ करते, बन धड़कन वो दिल में, समाने लगे हैं ! आजकल बेवजह… हम मुस्कुराने लगे
Read Moreजलाशय सूखे, नहर, कुएं सब सुख गए खेतों में पानी नहीं, जमीन में दरारे पड गए ||1|| दैवी प्रकोप है
Read Moreसुमित प्रताप सिंह की नवप्रकाशित पुस्तक ‘सावधान! पुलिस मंच पर है’ पढ़ी जा रही है। हाथ में आते ही यह कविता
Read Moreइच्छा है कि आज बने, लिट्टी चोखा दाल मित्र मंडली साथ में, जमकर होय निहाल बैगन आलू का भरता, लाल
Read Moreदेह उसकी देह आज चुपचाप पड़ी थी म्रत बिना कम्पन के मार कर अपने मन को जब मुर्दा सी पड़ी
Read Moreकितनी पिसती है हर रोज चकला ,बेलन के मध्य स्त्री हाँ स्त्री रोटी सी स्त्री कभी कभी यूँ ही सोचकर
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